- 5 Posts
- 1 Comment
ऐसा कोई गीत नहीं जो हँसके गा सकूँ
ऐसी ग़ज़ल नहीं जो बिना रोये सूना सकूँ
ऐसी भी दवा नहीं जो मैं खा सकूँ
ऐसा तो मर्ज नहीं जो दवा से मिटा सकूँ
दुःख बहुत है सीने में
मुश्किलें हैं जीने में
ऐसा कोई दोस्त नहीं जिसे अपने दिल का दर्द
मैं सुना सकूँ!
रोज़ सुबह होती है
रोज़ दिन ढलता है
ऐसा कोई वक्त नहीं जब अकेला बैठ
कुछ लम्हे चैन से बिता सकूँ!
और कोई गम नहीं
अब आँख भी तो नम नहीं
बस ये सतरंगी यादें हैं जिन्हें चाहते हुए भी कभी
न मैं भुला सकूँ!
अपनों से नहीं आशा
न उम्मीदें गैरों से
पर ये पंछी यादों के पर कटे इरादों के, जिन्हें चाह कर भी कभी
न मैं उड़ा सकूँ
रास्ते कीं ठोकरों ने
धुप के थपेड़ों ने
इक अदब सिख दिया कि अब बड़ों के सामने कभी
न मैं अपना सर उठा सकूँ
बस यही गनीमत है
प्यार की जो कीमत है
जज्बा दिल में बाकी है, बेवफाओं के बदले में वफ़ा
कर उसे चूका सकूँ!
ऐसा कोई गीत नहीं जो लबों पे सजा सकूँ
ऐसा संगीत नहीं जो दिल में मैं बजा सकूँ
ऐसा कोई मीत नहीं जिससे दिल लगा सकूँ
ऐसा अतीत नहीं जिससे नज़रें मिला सकूँ
इस दिल में और क्या है सुनो
क्या कहूँ
बात कोई ख़ास नहीं
जो आपको बता सकूँ
कवि : आदित्य श्रीराधेकृष्ण सोऽहं
Read Comments